विवरण: जोशी, एक समर्पित दास दास दासी, अपनी मालकिन के ऐशट्रे को उत्सुकता से खा जाती है, हर धुएंदार अवशेष का स्वाद लेती है। यह स्पष्ट दृश्य उसकी अटूट आज्ञाकारिता और अपमान को दर्शाता है, क्योंकि वह हर आखिरी राख को चाटता है, जिससे उसकी मालकिन की खुशी के प्रति उसका समर्पण साबित होता है।